Tuesday, December 25, 2018

मेरी बेटी को ज़िंदा जला दिया, ये दरिंदों का राज है'

आग में जलाकर मार डाली गई संजलि की मां अनीता के रोने की आवाज़ सुनकर रमाशंकर 'विद्रोही' की कविता की ये पंक्तियां याद आती हैं और ऐसा लगता है जैसे कानों के पर्दे फटने वाले हैं.

दिसंबर का आखिरी हफ़्ता और उत्तर भारत में बह रही सर्द हवाएं भी जैसे 15 साल की संजलि की मौत का मर्सिया पढ़ती मालूम होती हैं.

संजलि वो लड़की है जिसे मंगलवार, 18 दिसंबर को आगरा के पास मलपुरा मार्ग पर ज़िंदा आग के हवाले कर दिया गया.

"मरने से पहले मेरी बच्ची बार-बार कह रही थी कि मम्मी कुछ खाने को दे दो, भूख लगी है. पानी पिला दो, प्यास लगी है. लेकिन डॉक्टर ने कुछ खिलाने-पिलाने से मना किया था तो मैं उसे कुछ नहीं दे पाई."

आग में झुलसी और भूख-प्यास से तड़पती अपनी बच्ची संजलि को याद करके उसकी मां अनीता फफक उठती हैं, कहती हैं "मेरी बेचारी बच्ची भूखे-प्यासे ही इस दुनिया से चली गई."

ताजनगरी आगरा में एक ओर जहां क्रिसमस से पहले की चहल-पहल अपने पूरे उफ़ान पर दिखाई देती है वहीं यहां से महज़ 15 किलोमीटर दूर लालऊ गांव की जाटव बस्ती में मातम पसरा हुआ है.

संजलि की मां की आंखों के नीचे काले घेरे उभर आए हैं. शायद पिछले एक हफ़्ते से वो लगातार रो रही हैं.

बेहद कमज़ोर आवाज़ में वो बताती हैं, "रोज़ की तरह हंसी-ख़ुशी वाला दिन था. संजलि मुझे हमेशा की तरह नमस्ते करके स्कूल के लिए निकली थी. कौन जानता था कि वो वापस ही नहीं आएगी..."

आपकी बेटी को आग लगा दी है'
18 दिसंबर को दोपहर के तक़रीबन डेढ़ बजे होंगे. संजलि की मां घर के कामों में लगी थीं तभी बस्ती के एक लड़का दौड़ता हुआ आया और बोला, "संजलि को कुछ लोगों ने आग लगा दी है, मैंने आग बुझाने की कोशिश की लेकिन बुझी नहीं. आप जल्दी जाइए."

ये सुनकर संजलि की मां भागती हुई वहां पहुंचीं. वो कहती हैं, "जाकर देखा तो मेरी बेटी तड़प रही थी. मेरे पहुंचने से कुछ देर पहले ही पुलिस की गाड़ी भी वहां पहुंच चुकी थी. हम लोग उसे पुलिस की गाड़ी में लेकर एसएम हॉस्पिटल पहुंचे."

"मैं उसे छाती से लगाए गाड़ी में बैठी थी. मैंने उससे पूछा कि किसने उसके साथ ऐसा किया. वो बस इतना ही बता पाई कि हेलमेट लगाए लाल बाइक पर दो लोग आए थे जिन्होंने उस पर पेट्रोल जैसी कोई चीज़ छिड़ककर आग लगाई और फिर गड्ढे में धकेल दिया."

जिस सड़क पर संजलि को जलाया गया वो मलपुरा रोड को ललाऊ गांव से जोड़ती है और संजलि का घर यहां से लगभग तीन किलोमीटर दूर है.

इस सड़क के किनारे अब भी वो जली हुई झाड़ियां और राख दिखती हैं जिनमें संजलि को धकेल दिया गया था.

हैरत कि बात ये है कि ये वाकया भरी दोपहर में हुआ जब संजलि स्कूल की छुट्टी के बाद साइकिल से घर लौट रही थीं. चौंकाने वाली बात ये भी है कि ये सड़क कभी सुनसान नहीं रहती. यहां दोनों तरफ़ से वाहनों और लोगों का आना-जाना लगा रहता है.

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