Friday, March 29, 2019

नरेंद्र मोदी तमिलनाडु की जनता को क्यों नहीं रिझा पाते?

राजनेता अक्सर अपने चुनावी अभियान में हैरान करने वाले वादे करते हैं, लेकिन यात्री विमानों में समय-समय पर दी जाने वाली सूचनाएं भी चुनावी वादों में शामिल हो जाएं तो ये और भी हैरान करता है. वो भी तब जब भारत की ज़्यादातर आबादी ने हवाई जहाज़ में क़दम नहीं रखा है.

कुछ ऐसी ही घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु के कांचीपुरम में एक रैली में की. उन्होंने कहा, ''हम गंभीरता से विचार कर रहे हैं कि जो भी फ़्लाइट तमिलनाडु से उड़ान भरे उसमें तमिल भाषा में भी सूचनाएं दी जाएं.''

राज्य के मुख्यमंत्री पलानीसामी भी रैली में मंच पर मौजूद थे. सत्ताधारी एआईएडीएमके ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए राज्य में बीजेपी से गठबंधन किया है.

प्रधानमंत्री मोदी ने दूसरा वादा किया- चेन्नई सेंट्रल स्टेशन का नाम बदलकर एमजी रामाचंद्रन स्टेशन किया जाएगा. एमजी रामाचंद्रन एआईएडीएमके के संस्थापक और सबसे बड़े नेता थे.

लेकिन जो राजनेता जन रैली में इससे कई गुना ज़्यादा बड़े वादे जनता से करता हो उसके इन साधारण वादों के पीछे क्या वजह हो सकती है?

आम तौर पर अपने बेहतरीन भाषणों के लिए मशहूर प्रधानमंत्री मोदी जब तमिलनाडु में रैली कर रहे थे तो अपने 40 मिनट के भाषण के दौरान वह असहज दिखे. ऐसा साफ़ लग रहा था कि हिंदी में भाषण ना देने का उनका फ़ैसला उन्हें मुश्किल में डाल रहा था. मोदी अंग्रेज़ी में भाषण दे रहे थे.

जिस दौरान प्रधानमंत्री अपना भाषण दे रहे थे उस वक़्त ट्विटर पर #GoBackModi ट्रेंड कर रहा था. सबसे पहले यह हैशटैग पिछले साल सामने आया जब नरेंद्र मोदी तमिलनाडु दौरे पर थे. उस वक़्त विपक्ष ने इस हैशटैग का इस्तेमाल करके ट्वीट किया था. अब, जब मोदी दक्षिण में जाते हैं तो उस क्षेत्र में ये हैशटैग ट्रेंड करने लगता है.

ऐसा लग रहा था जैसे प्रधानमंत्री को ये समझ नहीं आ रहा हो कि उन्हें आम लोगों से ख़ुद को कैसे जोड़ना है.

पहली बार वोटर बने डी सेल्वाकुमार ने बीबीसी तमिल से कहा, ''कई युवा बीजेपी की इस रैली में शामिल नहीं हुए. हम मोदी को राष्ट्रीय नेता के तौर पर नहीं देखते क्योंकि तमिलनाडु के लोग उनसे जुड़ा हुआ महसूस नहीं करते.''

लेकिन हर कोई ऐसा नहीं सोचता. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस राज्य में कई ऐसे लोग हैं जो मोदी को एक मज़बूत नेता मानते हैं.

दक्षिण भारत में बीजेपी के एक प्रवक्ता नारायणन तिरुपति ने कहा, ''प्रधानमंत्री एकमात्र व्यक्ति हैं जो 2016 में जयललिता के निधन और 2018 में करुणानिधि के जाने से पैदा हुए ख़ालीपन को भर सकते थे. ये दो मुख्यमंत्री राज्य में दशकों से राजनीति पर हावी थे.''

बीबीसी से उन्होंने कहा, ''मोदी के नाम से यहां पार्टियों में डर है और इसलिए वो दुष्प्रचार करके उनकी साख ख़राब करना चाहती हैं.''

लेकिन वरिष्ठ पत्रकार केएन अरुण कहते हैं कि पिछले साल आए गज तूफ़ान पर प्रधानमंत्री की चुप्पी ने लोगों में ग़ुस्सा भर दिया है. उन्होंने इसे लेकर एक ट्वीट तक नहीं किया. अब जब चुनाव आए हैं तो वह तीन बार तमिलनाडु आ चुके हैं.

तमिलनाडु एक ऐसा राज्य है जिसने लंबे समय से उत्तर भारत के 'आधिपत्य' के ख़िलाफ़ एक आवाज़ उठाई. 1965 में तमिलनाडु में हिंदी को भारत की एकमात्र आधिकारिक भाषा बनाने के प्रस्ताव के विरोध में हिंसक प्रदर्शन हुए थे.

यहां की राजनीति भी द्रविड़ आंदोलन से प्रभावित है, जिसके मूल में ब्राह्मण विरोधी भावना है, जो अन्य जातियों के लिए 'आत्म-सम्मान' पर ज़ोर देती है और सामाजिक कल्याण और विकास पर ध्यान केंद्रित करती है.

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक़ इस राज्य में साक्षरता 80 फ़ीसदी से ज़्यादा है.

इसमें प्रति एक लाख बच्चों के जन्म पर मातृ मृत्यु दर केवल 67 है. इसका बड़ा कारण राज्य सरकारों की समाजवादी कल्याणकारी नीतियां हैं. राज्य की आर्थिक वृद्धि दर साल 2017-18 में 8 फ़ीसदी रही जो राष्ट्रीय औसत से कुछ अधिक है.

डीएमके नेता पीटीआर त्यागराजन मोदी की रैली को शर्मनाक बताते हैं. वो कहते हैं, ''समस्या यह है कि वह जो कुछ भी तमिलनाडु के लिए करने की बात करते हैं वो राज्य में 20 साल पहले ही हो चुका है तो उनके वादे हमारे लिए बेमतलब हो जाते हैं. उनकी तथाकथित लैंडमार्क योजनाओं के सभी लक्ष्यों को इस राज्य में दशकों पहले हासिल कर लिया गया था.''

लेकिन राज्य में बीजेपी के नेता नारायणन कहते हैं, ''उनकी पार्टी ने राज्य में इंफ़्रास्ट्रक्चर और विकास के लिए कई योजनाएं लागू की हैं जिनका लाभ राज्य को मिला है.''

फ़्रंटलाइन के एसोसिएट एडिटर आर के राधाकृष्णन कहते हैं, ''स्थानीय मुद्दों, ख़ासकर इस क्षेत्र के मुद्दों की पकड़ मोदी के भाषणों में नज़र नहीं आई. उनसे उम्मीद नहीं की जा सकती कि देश में हर जगह क्या हो रहा है उसका वे हर पल हिसाब रखें, लेकिन उनके भाषण लिखने वालों को यह बेहतर तरीक़े से पता होना चाहिए.''

राधाकृष्णन कहते हैं, ''रेलवे स्टेशनों के नाम बदलने से बेहतर मोदी ये बता सकते थे कि कैसे राज्य में उद्योग बढ़ा है. वो सुप्रीम कोर्ट के पटाख़ों पर बैन लगाने के फ़ैसले के बारे में बोल सकते थे जिससे सिवकासी में आतिशबाज़ी उद्योग प्रभावित हुआ है.''

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